भगवान दत्तात्रेय को गुरुओं का गुरु कहा जाता है। वे ब्रह्मा, विष्णु और शिव के दिव्य स्वरूप से प्रकट हुए थे। दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti 2022) उन्हीं त्रिमूर्ति देवों के नए स्वरूप के प्राकट्य का दिन है। दत्तात्रेय भगवान के दर्शन मात्र से आप त्रिदेव के दर्शन कर पाते हैं। दत्तात्रेय भगवान में आप तीनों भगवान के दर्शन कर सकते हैं। दत्त जयंती एक महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है। मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को यह त्यौहार मनाया जाता है। भगवान दत्तात्रेय को भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से भी एक माना जाता है। माना जाता है कि उनकी गुरु प्रकृति थी। उनसे प्रकृति की विभिन्न घटनाओं को देखकर ज्ञान प्राप्त किया था।
कैसा है भगवान दत्तात्रेय का स्वरूप
भगवान दत्तात्रेय के तीन सिह और छह हाथ है। माना जाता है कि उनके यह तीन सिर ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अंश है। उनके छह हाथों में कमंडल और माला भगवान ब्रह्मा के प्रतीक चिह्न है। वहीं शंख और चक्र भगवान विष्णु के साथ जुड़े हैं। वहीं त्रिशुल और डमरू भगवान शिव के प्रतीक चिह्न है। दत्त जयंती (Dattatreya Jayanti) पूरे भारत में दत्तात्रेय को समर्पित है। दत्तात्रेय भगवान के ज्यादातर मंदिर कर्नाटक के गुलबर्गा, महाराष्ट्र के कोल्हापुर में नरसिम्हा सहित महाराष्ट्र के हर जिले में भगवान दत्तात्रेय के मंदिर हैं। आगे जानते हैं दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) कब है-
दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) 2022 तिथि और समय
शनिवार, 07 दिसंबर, 2022
व्रत के लिए शुभ समय
तिथि प्रारंभ – 08:01 पूर्वाह्न – 07 दिसंबर, 2022
तिथि समाप्त – 09:27 पूर्वाह्न – 08 दिसंबर, 2021
दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) पर जानिए उनकी कथा
भगवान दत्तात्रेय अत्रि ऋषि और उनकी पत्नी अनुसूया के पुत्र थे। अनुसूया एक पतिव्रता और सती स्त्री थी। उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और शिव को आदर्श मानते हुए एक पुत्र की कल्पना की था। इसके बाद दत्तात्रेय का जन्म हुआ और उसमें तीनों गुण थे, लेकिन फिर भी दत्तात्रेय के जन्म की कहानी कुछ विचित्र है। दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) पर उनकी कथा सुनना लाभदायक रहता है –
दत्तात्रेय जन्म की कथा के अनुसार स्वर्ग में देवी लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती ने अपने-अपने सतीत्व और पतिव्रत धर्म की चर्चा कर रही थी। तब नारदजी ने उन्हें सती अनुसूया के बारे में बताया। तीनों देवियों ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सती अनुसूया की परीक्षा लेने भेज दिया।
जब तीनों देव ऋषि पुत्रों के रूप में पहुंचे और उन्होंने सती अनुसूया से भोजन की मांग की और कहा कि वे निर्वस्त्र होकर उन्हें भोजन कराएं। तब अनुसूया ने ध्यान में होकर तीनों देवताओं को पहचान लिया। अनुसूया ने हाथ में जल लेकर तीनों त्रिदेव पर डाल दिया, जिससे वे तीनों बच्चे बन गए।
तब सती अनुसूया उनकी माता की तरह देखभाल करने लग गई। तब बच्चों को भोजन करवाकर माता अनुसूया ने उन्हें अपने ही घर रख लिया।
भगवान के नहीं लौटने पर तीनों देवियां परेशान हो गई। देवियों ने माता अनुसूया से त्रिदेव को लौटाने की प्रार्थना की, तब अनुसूया ने ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव को पहले की तरह कर दिया। तब तीनों भगवान ने देवी को आशीर्वाद दिया और तीनों के स्वरूप के रूप में दत्तात्रेय का जन्म हुआ। दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) पर इस कथा का पाठ करने से परेशानी दूर होती है।
दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) की पूजा विधि
– दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) सूर्योदय से पहले उठें।
– इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना काफी अच्छा माना जाता है।
– सुबह भगवान दत्तात्रेय के मंदिर जाकर व्रत का संकल्प लें। यदि दत्तात्रेय मंदिर आसपास नहीं है, तो आप शिव मंदिर भी जा सकते हैं।
– भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति या चित्र के सामने फल, दीपक, धूप और कर्पूर रखकर पूजा करें।
– अवधूत गीता का पाठ करें। इसे भगवान दत्तात्रेय के प्रवचन माने जाते हैं।
– ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा और ‘ॐ महानाथाय नमः मंत्र का जाप करें।
– जरूरतमंदों को भोजन खिलाएं।
– अगले दिन व्रत का पारण करें।
– व्रत में आप फलाहार कर सकते हैं।
दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) का महत्व क्या है?
भगवान दत्तात्रेय ने प्रकृति से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने पशु, पक्षी, नदी, पर्वत आदि को आधार बनाकर अपनी बात कही। देश में भगवान दत्तात्रेय के नाम से दत्त समुदाय की शुरुआत हुई है। दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) पर दीपदान करें। इनकी पूजा से त्रिदेव की पूजा का फल प्राप्त होता है।