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नवरात्रि के नवें दिन (महानवमी) करें सिद्धिदात्री की पूजा और पाएं सभी तरह की सिद्धियां

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नवदुर्गा की नवीं शक्ति का नाम है सिद्धिदात्री। नवरात्रि के नवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा करने का विधान है। जैसा उनका नाम है, वैसा ही उनका काम है। माता सिद्धिदात्री भक्तों को सभी तरह की सिद्धियां देने के लिए जानी जाती है। उनकी कृपा का विस्तार अनंत है। इस दिन नवरात्रि के नौ दिन (महानवमी) के व्रत की भी पूर्णाहुति होती है, इसलिए साधक का शरीर और मन ऊर्जा से भरपूर होता है। इसी ऊर्जा को भी कई सिद्धपुरुष सिद्धिदात्री कहते हैं, क्योंकि नवरात्रि के शास्त्रोक्त विधि से पूजा कर लेने वाले व्यक्ति के लिए कुछ भी असंभव नहीं रहता है।

कैसा है माता सिद्धिदात्री का स्वरूप

सिद्धिदात्री मां दुर्गा का नवां रूप है। नवरात्रि के आखिरी दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माता को महालक्ष्मी और महासरस्वती का रूप भी कहा जाता है। माना जाता है कि सभी देवियों की दिव्य शक्ति माता सिद्धिदात्री में मौजूद है। उनके एक हाथ में चक्र, एक में पुष्प, एक में गदा और एक में शंख रहता है। उनका स्वरूप महालक्ष्मी की तरह की दिखता है।

नवरात्रि के नवें दिन (महानवमी) जानिए क्या होता है सिद्धिदात्री की पूजा से लाभ

नवरात्रि के आखिरी दिन सिद्धिदात्री की पूजा करने से आठ प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये सिद्धियां कुछ इस प्रकार है-
1- अणिमा सिद्धि- अपने शरीर को अणु की तरह छोटा कर लेना।
2. महिमा सिद्धि- अपने शरीर के आकार को विशाल कर लेना।
3. गरिमा सिद्धि- अपने शरीर के भार को बहुत अधिक बढ़ा लेना।
4. लघिमा सिद्धि- अपने शरीर को एकदम हल्का कर लेना, जिससे हवा में भी उड़ा जा सकें।
5. प्राप्ति सिद्धि- बिना किसी रोकटोक के किसी भी स्थान पर आ जा सकना।
6. प्रकाम्य सिद्धि- दूसरे के मन की बात को आसानी से समझ जाना
7. ईशत्व सिद्धि- भगवान के समान सिद्धि, लेकिन इसका मतलब है कि सभी को एक समान दृष्टि से देखना और उनका दु:ख दूर करना।
8. वशित्व सिद्धि- दूसरों को अपने वश में रखना।

नवरात्रि के आखिरी दिन माता सिद्धिदात्री की कृपा से ये सभी सिद्धियां आसानी से प्राप्त की जा सकती है। माना जाता है कि सभी देवी-देवताओं के ये सभी सिद्धियां माता की कृपा से ही प्राप्त हुई है। जानते हैं कैसे करना है सिद्धिदात्री की पूजा।

सिद्धिदात्री की पूजा विधि

नवरात्रि के नवें दिन (महानवमी) सिद्धिदात्री की पूजा से पहले घर में स्थापित कलश की पूजा करना चाहिए। कलश पूजन से पहले श्री गणेश, गौरी, महादेव और नवग्रह और मातृका का ध्यान और पूजन करना बहुत श्रेयस्कर रहता है। इसके बाद माता सिद्धिदात्री के चित्र या मूर्ति को साफ करके, माता का आह्वान करना चाहिए। माता को धूप, दीप और नैवेद्य लगाना चाहिए।

कहा जाता है कि माता को नवप्रकार के भोग अर्पण करना चाहिए। इस दिन नव कन्याओं को भरपेट भोजन करवाकर उन्हें उपहार देना चाहिए। माता को लाल रंग के वस्त्र भेंट जरूर करना चाहिए। इस दिन भक्तों को भी सादे कपड़े पहनना चाहिए। पूजा के बाद माता की मूर्ति की तरफ देखकर ध्यान लगाना चाहिए और मन ही मन माता से अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करनी चाहिए।

माता सिद्धिदात्री के मंत्र

‘ॐ सिद्धिदात्र्यै नम:।’

और

या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 

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