नवरात्रि का उत्सव पूरे नौ दिन तक चलता है। हर दिन मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा होती है। नवरात्रि के पांचवें देवी स्कंदमाता की पूजा होती है। कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। उन्हीं की माता होने के कारण नवदुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता कहते हैं। संस्कृत में स्कंद का मतलब निष्पक्ष भी होता है। माता सदैव निष्पक्षता से न्याय करतीं हैं। वे किसी के प्रति भेदभाव नहीं रखती है। सबसे बड़ी बात यह है कि वे अपने सभी भक्तों को अपना बालक मानकर उनकी रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहती है। नवरात्रि के पांचवें दिन कैसे करना है स्कंदमाता की पूजा, क्या है स्कंदमाता की पूजा से लाभ और क्या है माता के प्राकट्य की कथा, जानते हैं-
सुनहरे रंग से चमचमाता है स्कंदमाता का रूप
नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। उनका स्वरूप पूरी तरह से वात्सल्यमयी होता है। वे हमेशा अपने सभी भक्तों को अपने पुत्र की तरह ही स्नेह देती है। स्कंदमाता सिंह पर सवार रहती है। उनकी गोद में स्कंद यानी कि कार्तिकेय बैठे रहते हैं। उनका स्वरूप सुनहरी आभा से चमकता रहता है। स्कंदमाता के चार हाथ हैं, दो हाथों में वे कमल के पुष्प धारण करती है। एक हाथ से उन्होंने स्कंद को संभाला हुआ है और दूसरे हाथ उनका अभय मुद्रा में है। स्कंदमाता का स्वरूप उनके मातृत्व को बताता है। स्कंदमाता पूरे विश्व की देखभाल अपने बच्चे की तरह करती है। कई जगह पर स्कंदमाता का नाम पद्मासनी भी है। माता पार्वती, गिरिजा, और गौरी भी स्कंदमाता के अन्य नाम है। जानते हैं क्या है स्कंदमाता की कथा
स्कंदमाता की कथा
एक कथा के अनुसार एक राक्षस तारकासुर था, जिसने भगवान ब्रह्माजी को अपनी कठिन तपस्या से प्रसन्न किया और उनसे अमरता का आशीर्वाद मांगा। ब्रह्माजी ने उन्हें अमरता का आशीर्वाद तो नहीं दिया, लेकिन तारकासुर ने मांगा कि भगवान शिव का पुत्र ही उन्हें मार पाएं। सती के वियोग से दु:खी भगवान शिव गहरी समाधि में थे। तारकासुर का सोचना था कि भगवान शिव अब कभी भी विवाह नहीं करेंगे। ब्रह्माजी के आशीर्वाद को प्राप्त करके तारकासुर ने स्वर्ग और पृथ्वी सभी जगह अपना राज्य फैला लिया। तब देवताओं ने माता दुर्गा की आराधना की। माता दुर्गा ने ही पार्वती के रूप में हिमालय राज के यहां जन्म लिया। देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया और फिर स्कंद का जन्म हुआ। स्कंदमाता का यह स्वरूप माता-पुत्र के वात्सल्य का प्रतीक है। स्कंदमाता की पूजा करने से संतान संबंधी चिंता दूर होती है। जानते हैं कैसे करना है नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा-
ऐसे करें स्कंदमाता पूजा
– नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा करने से पहले आप स्वच्छ तन और मन के साथ घटस्थापना वाली जगह पर पांच मिनट ध्यान लगाएं। जिस कलश की पहले दिन स्थापना की गई थी, उसकी भी पूजा करें। कलश के साथ ही नवग्रह और दिक्पालों की पूजा करें। स्कंदमाता का आह्वान करें। माता की मूर्ति को स्नान करवाएं। यदि आपके पास माता की मूर्ति की जगह चित्र हो, तो उसे साफ करें। माता को वस्त्र, श्रृंगार और फल-फूल भेंट करें। माता को हलवे का भोग लगाएं। स्कंदमाता के मंत्रों का जाप जरूर करें।
स्कंदमाता के मंत्र
– ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
– सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
– या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
स्कंदमाता स्वरूप का आध्यात्मिक अर्थ
स्कंदमाता का बाह्य स्वरूप स्कंद को हाथ में लिए शेर पर सवार एक देवी का है, लेकिन इनके आध्यात्मिक स्वरूप को समझना सभी साधकों के लिए बेहद जरूरी है। स्कंद या कार्तिकेय शक्ति और साहस के प्रतीक है। वहीं शेर भी हिंसा का स्वरूप है और शक्ति और अहंकार के लिए जाना जाता है। माता प्रेम से दोनों को वश में किए हुए हैं। अर्थात् स्कंदमाता संदेश देना चाहती है कि प्रेम से सबकुछ संभव है। इस दुनिया में शक्ति और अहंकार को प्रेम से ही वश में किया जा सकता है।
स्कंदमाता पूजा से बुध और मंगल की शांति
स्कंदमाता पूजा से नवग्रहों में बुध और मंगल ग्रह की पीड़ा शांत होती है। बुध ज्ञान के स्वामी है। वहीं व्यापार-व्यवसाय में उन्नति के लिए भी कुंडली में बुध का अच्छा होना चाहिए। स्कंदमाता की पूजा करने से बुध ग्रह से संबंधित पीड़ा दूर होती है। कई ग्रंथों में माता को मंगल ग्रह की शांति के लिए भी आधिकारिक बताया गया है। मंगल यदि कुंडली में अच्छा होता है, एक्टिवनेस बढ़ती है, हम ऊर्जावान रहते हैं। वहीं जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने में दिक्कत नहीं आती है। स्कंदमाता की पूजा से मंगल के सकारात्मक परिणामों में वृद्धि होती है।
स्कंदमाता का ज्योतिषीय संबंध
देवी स्कंदमाता क्रूर सिंह पर विराजमान हैं। वह शिशु स्कंद को गोद में उठाएं है। वह अपने ऊपरी दो हाथों में कमल का फूल लिए हुए हैं। शायद यही कारण है कि देवी स्कंदमाता की उपस्थिति को शुभ्रा कहा जाता है जो उनकी सफेद रचना को दर्शाती है। स्कंदमाता की पूजा से भगवान कार्तिकेय से प्यार, साहस और वीरता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार स्कंदमाता की पूजा से मंगल ग्रह पर सकारात्मक प्रभाव पड़ते है। नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा से मंगल मजबूत होता है। मंगल के सकारात्मक प्रभाव का अर्थ है गतिविधि, रुचियों, इच्छा, शारीरिक गुणवत्ता, उद्देश्य समन्वित जीवन शक्ति, मदद करने की क्षमता, मानसिक दृढ़ता में सकारात्मक वृद्धि। इसके अलावा मंगल के अच्छे प्रभाव आपको निर्भीकता, शिष्टता, केंद्रित, संघर्षशीलता और शक्ति भी प्रदान करते हैं।
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