देश के सबसे पवित्र त्यौहारों में से एक है नवरात्रि। साल में दो बार नवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है। पहला चैत्र नवरात्रि और दूसरा अश्विन नवरात्रि। इस साल चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल शनिवार से शुरू हो रही है। नौ दिन तक चलने वाले इस नवरात्रि उत्सव में मां दुर्गा के नवरूपों की पूजा का विधान है। नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री मतलब पर्वतराज की पुत्री। माता शैलपुत्री के अन्य नाम भवानी, पार्वती और हेमावती भी प्रसिद्ध है। जानते हैं नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री के बारे में विशेष तथ्य और उनकी पूजा का विधान-
कौन हैं माता शैलपुत्री
माता शैलपुत्री भगवान शिव की पहली पत्नी सती का अवतार मानी जाती है। जब दक्ष प्रजापति के यज्ञ में माता शैलपुत्री ने अपने शरीर को स्वऊर्जा से भस्म कर लिया। तब उन्होंने दूसरा जन्म पर्वतराज हिमालय के घर लिया। उनका नाम शैलपुत्री रखा गया। उनका स्वरूप बेहद खूबसूरत है। उनके सिर पर भगवान शिव की तरह की अर्धचंद्र की सुनहरी आभा मौजूद है। वे बैल की सवारी करती हैं और उनके एक हाथ में त्रिशुल और दूसरे हाथ में कमल का फूल है।
शैलपुत्री पूजा के लाभ
माता शैलपुत्री नवदुर्गा में पहली देवी हैं। उनकी पूजा करने से दृढ़ इच्छा शक्ति का निर्माण होता है। माता शैलपुत्री मूलाधार चक्र की देवी हैं। उनकी कृपा से पूरा शरीर ऊर्जा से भरा रहता है। किसी भी तरह का कार्य करने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति का होना जरूरी है। यह माता शैलपुत्री की कृपा से ही संभव है। माना जाता है कि जीवन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए माता शैलपुत्री की कृपा होना जरूरी है। नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूजा विधि के बारे में जानिए आगे-
मां शैलपुत्री पूजा विधि
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना मुहूर्त को देखें। सुबह जल्दी उठकर सभी कार्यों से निवृत्त हों। घटस्थापना को शुभ मुहूर्त में करके माता की चौकी सजाएं। कलश स्थापना करें और माता शैलपुत्री के बैल पर बैठे स्वरूप का ध्यान करें। माता को सफेद खूबसूरत वस्त्र अर्पित करें। माता को फल, हलवा या खीर का भोग लगाएं। माता को ये चीजें अत्यधिक प्रिय है। अब माता के किसी भी मंत्र का 108 बार पाठ जरूर करें। शाम में भी फिर धूप, दीप जलाएं और मां की देसी घी के दीपक से आरती करें। माता को दोनों समय भोग लगाएं।
मां शैलपुत्री की पूजा के लिए करें इस मंत्र का जाप करें।
वन्दे वाडथ्रीछतलाभाय चंद्रार्धकृतशेखरम।
वृषारुढां शूलधरं शैलपुत्री यशस्विनीम्।।
वंदी वद्रीचतालभाय चंद्रार्धाकृतांखरामा।
वृषारृहं शालधररू शैलपुत्री यशस्विनीम्।।
शैलपुत्री व्रत कथा
नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा के साथ ही उनकी कथा पढ़ने का भी विधान है। माता शैलपुत्री के जन्म के पीछे बेहद रोचक कहानी है। कहा जाता है कि शैलपुत्री माता सती का दूसरा जन्म है। अपने पिछले जन्म में शैलपुत्री प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। सती के पिता दक्ष को शिव पसंद नहीं थे। एकबार दक्ष ने एक यज्ञ किया और उस यज्ञ में भगवान शिव और अपनी बेटी सती को नहीं बुलाया।
शिव के प्रति इस द्वेष से आक्रोश में आई सती ने यज्ञ में जाने के लिए इच्छा जाहिर की। तब शिव ने बहुत समझाया कि आमंत्रण नहीं मिलने पर वहां जाना उचित नहीं होगा, लेकिन सती नहीं मानी। जब सती यज्ञ में पहुंची, तो दक्ष सती और शिव का बहुत अपमान किया। दक्ष ने शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहे, जो सती सह ना सकी और शिव निंदा सुनने के पाप लगने के कारण खुद को योगाग्नि में जलाकर भस्म कर लिया। इसके बाद देवताओं की इच्छा से शिव का एकांत तोड़ने के लिए सती ने राजा हिमालय के घर दोबारा शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया।
माता शैलपुत्री की पूजा से सूर्य ग्रह को मिलता है बल
नवदुर्गाओं का नवग्रह पर भी शासन है। माता शैलपुत्री नवदुर्गाओं में पहली देवी है। इनकी पूजा से सूर्य ग्रह मजबूत होता है। यदि आपको सूर्य से संबंधित किसी भी तरह की पीड़ा है जैसे- पिता से संबंधों की चिंता, नौकरी में उन्नति नहीं या यश प्राप्ति में कठिनाई आ रही है, तो आपको माता शैलपुत्री की पूजा जरूर करना चाहिए। सूर्य के मजबूत होने से दृढ़ निश्चयता स्वत: ही मिल जाती है और कार्य सिद्ध होने लगते हैं।
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