All

सभी ज्योतिर्लिंगों में विशेष हैं महाकालेश्वर, यहां जानें, इस मंदिर का महत्व एवं इतिहास

Pinterest LinkedIn Tumblr

उज्जैन भारत का प्राचीन शहरों में से एक है, इसका दूसरा नाम उज्जयिनी भी है। यहां भगवान शिव को समर्पित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है, जो 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। यह क्षिप्रा नदी के निकट रुद्र सरोवर के तट पर स्थित है। इसको भगवान शिव के सबसे पवित्र निवास स्थान में से एक माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग की खास बात है कि पीठासीन देवता शिव, लिंगम रूप में विद्यमान हैं। और ये लिंग स्वंयम्भू है।

यह मंदिर 18 महाशक्ति पीठों में से एक है। शक्तिपीठों के बारे में माना जाता है कि सती देवी के शव के शरीर के हिस्सों के गिरने के कारण धरती पर शक्ति का प्रजनन हुआ था। 51 शक्तिपीठों में से प्रत्येक में शक्ति और कालभैरव के लिए मंदिर हैं। सती देवी के ऊपरी होंठ के बारे में कहा जाता है कि वे यहां गिरे थे।

रोचक है महाकालेश्वर की कहानी

किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच बहस हुई कि सृष्टि में कौन सर्वोच्च है। उन्हें परखने के लिए, भगवान शिव ने ज्योति के एक अंतहीन स्तंभ के रूप में तीनों संसार को छेदा। भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने प्रकाश के अंत का पता लगाने के लिए, स्तंभ के साथ क्रमशः नीचे और ऊपर की ओर यात्रा करने का निर्णय लिया। भगवान ब्रह्मा ने झूठ बोला कि उन्होंने अंत का पता लगा लिया है, जबकि भगवान विष्णु ने अपनी हार स्वीकार कर ली। भगवान शिव प्रकाश के दूसरे स्तंभ के रूप में प्रकट हुए और भगवान ब्रह्मा को शाप दिया कि उनके लिए मंदिरों में कोई स्थान नहीं होगा, जबकि भगवान  विष्णु की अनंत काल तक पूजा की जाएगी। ज्योतिर्लिंग इसी रौशनी के सतम्भ को कहते है, जिसमें से आंशिक रूप से भगवान  शिव प्रकट होते हैं।

महाकालेश्वर की वास्तुकला और मंदिर की संरचना है अद्भूत

महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणा मुखी के रूप में जानी जाती है, जिसका अर्थ है कि यह दक्षिण की ओर है। यह एक अनूठी विशेषता है, जिसे तांत्रिक शिवनेत्र परंपरा द्वारा केवल 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर में ही पाया जाता है। महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर महादेव की मूर्ति प्रतिष्ठित है। गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के मूर्ति स्थापित हैं। दक्षिण में भगवान शिव के वाहन नंदी की मूर्ति है। तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नाग पंचमी के दिन दर्शन के लिए खुली होती है। मंदिर के पाँच स्तर हैं, जिनमें से एक भूमिगत है। 

महाशिवरात्रि और सावन में रहती है भारी भीड़

महा शिवरात्रि के दिन, मंदिर के पास एक विशाल मेला लगता है, और रात में पूजा होती है। श्रावण या भाद्रपद के महीनों के दौरान सावन के पवित्र काल के अंतिम सोमवार को भक्तों की बड़ी भागीदारी होती है, और पालकी में भगवान महाकाल की बारात, जिसे शाही सवारी भी कहा जाता है, क्षिप्रा नदी तक जाती है।

उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योंतिर्लिंग में वैसे तो पूरे साल ही श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है लेकिन सावन में यहां श्रद्धालुओं भीड़ कई गुना बढ़ जाती है। 

कैसे पहुंचे

महाकाल के दर्शन के लिए उज्जैन यातायात के तीनों साधनों से ही पहुंचा जा सकता है। वायुमार्ग से उज्जैन पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट इंदौर है जो करीब 58 किलोमीटर की दूरी पर है। एयरपोर्ट से आप टैक्सी या बस पकड़कर उज्जैन पहुंच सकते हैं। उज्जैन देश के लगभग सभी बड़े शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा है। यहां आने के लिए दिल्ली, मुंबई और कोलकाता से सीधी ट्रेन सेवा उपलब्ध है। इसके अलावा यहां कई बड़े शहरों से बस आती है। यहां आप सड़क मार्ग से देश के किसी कोने से आराम से आ सकते हैं।

Write A Comment