नवरात्रि शक्ति का पर्व है। इस समय माता दुर्गा के नवरूपों की विशेष आराधना करके भक्त शक्ति प्राप्त करते हैं। पूरे देश में नौ दिवसीय नवरात्रि का पर्व बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित है अर्थात् नवरात्रि के दूसरे माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। देवी की विशेष आराधना के जरिए भक्त ब्रह्चारिणी से मनचाहे आशीर्वाद की चाह रखते हैं। नवदुर्गा की स्तुति में देवी ब्रह्मचारिणी का विशेष स्थान है।
माता ब्रह्मचारिणी कौन है
शास्त्रों के अनुसार माता ब्रह्मचारिणी नवदुर्गाओं में दूसरे स्थान पर आती हैं। इनका रूप अत्यंत मनोहर है। वे सफेद वस्त्र धारण करती है और उनके हाथ में कमंडल और एक जाप माला है। माता का मुख सूर्य के समान तेजस्वी और चंद्रमा के समान शीतलता प्रदान करता है। माना जाता है कि वे नंगे पैर चलती हैं और किसी वाहन का उपयोग नहीं करती है। माता केवल फलों का भोजन करती हैं और वे त्याग के प्रतिमूर्ति हैं। अपने भक्तों को भी वे सादा जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है।
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा का दिन
चैत्र नवरात्रि 2022 में माता ब्रह्मचारिणी की पूजा 3 अप्रैल 2022, रविवार को की जाएगी।
माता ब्रह्मचारिणी पूजा से लाभ
मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से शक्ति, सदाचार, संयम, दृढ़ निश्चयता, त्याग और वैराग्य में वृद्धि होती है। उनकी
कृपा से मनुष्य शत्रुओं को पराजित कर पाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि माता ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य अपने आंतरिक शत्रु जैसे लोभ, मोह, लालच, वासना आदि को भी परास्त कर देता है। उनकी कृपा समस्त मनोकामनाओं को पूरा कर देती है।
कैसे करें ब्रह्मचारिणी की विशेष पूजा
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए सुबह जल्दी उठे। स्नान के बाद माता ब्रह्चारिणी के चित्र या मूर्ति को स्थापित करें। माता ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें। उन्हें पीले या सफेद रंग के वस्त्र अर्पण करें। माता फल, फूल और नैवेद्य अर्पण करें। माता को सात्विक भोजन पसंद है। ज्यादातर मां को केवल फलों का ही भोग लगाएं। माता के मंत्रों का कम से कम 108 बार जाप जरूर करें। माता की पूजा में चमेली के फूलों का उपयोग किया जाता है। माता की पूजा करने वाले साधकों को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए।
माता ब्रह्मचारिणी के विशेष मंत्र
– ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
– या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिण्यै रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।
देवी ब्रह्मचारिणी की कथा
माना जाता है कि हिमालय राज आदिशक्ति माता के परम भक्त थे। माता की कृपा से उनके घर एक बेटी का जन्म हुआ, जिसका नाम पार्वती रखा गया। माता पार्वती सती का अवतार थी, इसलिए उनके मन में सहज ही शिव के प्रति अनन्य प्रेम था। शिव से विवाह करने के लिए पार्वती ने घोर तपस्या की। इस दौरान वे हाथ में कमंडल और जाप माला लेकर शिव को पाने के लिए तपस्या करने लगी। इस तपस्या के चलते वे घनघोर वन में अकेली रहतीं और फल-फूल खाकर अपना जीवन यापन करती। इस दौरान कई असुरों ने भी माता को डराने की कोशिश की, लेकिन माता अपनी तपस्या से विचलित नहीं हुई और अंतत: उन्होंने शिव को प्राप्त किया।
मंगल ग्रह की शांति के लिए ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान
मां ब्रह्मचारिणी तप, शांति और अनन्य प्रेम के साथ वात्सल्य प्रदान करती है। जीवन में खुशी, समृद्धि के साथ संयम पाने के लिए ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है। मां ब्रह्चारिणी की कृपा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव दूर किए जा सकते हैं। कुंडली में यदि मंगल का कोई दोष हो, तो माता ब्रह्माचारिणी की उपासना जरूर करना चाहिए। सफलता प्राप्ति और बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने की इच्छा रखने वालों का ब्रह्माचारिणी माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
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